Thursday, August 13, 2020

गुलिक --- गणना एवं लग्न आदि द्वादश भावों में इसका प्रभाव व गुलिक सम्बन्धी अन्य फल --

गुलिक की स्थिति की गणना--
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भारतीय ज्योतिष में प्रमुखतः 9 ग्रह है और फलित सहयोगी उनके 9 उप ग्रह है जो इस प्रकार है --

     ग्रह                          उप ग्रह
1- सूर्य                          काल
2- चंद्र                          परिध
3- मंगल                        धूम
4- बुध                          अर्द्ध प्रहार
5- गुरु                          यमघण्ट
6- शुक्र                         इंद्रचाप
7- शनि                         गुलिक
8- राहु                          पात
9- केतु                         उपकेतु

 इनमें मुख्य रूप से शनि के उपग्रह गुलिक या मंIदी का ही अत्यधिक महत्व होता हैl यह मूल रूप से शनि ग्रह का पुत्र है और अशुभ फल देने में बहुत सामर्थ्यवान  होता है इसकी अपेक्षा में अन्य उपग्रह अशुभ व पाप फल देने में अर्द्धबली कहे जाते है.
गुलिक का संयोग जिस भाव से होता है वहां की शुभता को नष्ट कर यह जातक को शारीरिक व मानसिक रूप से संतप्त करने वाला होता हैl
यहाँ तक की जिस ग्रह के साथ इसकी युति होती है उस ग्रह के कारकत्व का भी नाश करता है, केवल छठे व ग्यारहवें भाव में ही इसकी शुभता देखने को मिलती है लेकिन इसका मूल प्रभाव मारक या विनाशक शक्ति के रूप में बना रहता है.
अतः इसकी दशा-अंतर्दशा में बहुत सतर्कता व सावधानी बरतनी चाहिए.

गुलिक की गणना--
गुलिक मूल रूप से शनि ग्रह का पुत्र कहा जाता है अतः शनि के भाग का जो काल होता है उसी काल खंड को गुलिक काल के रूप में जाना जाता है l
यदि किसी जातक का जन्म दिन में होता है. तो उस दिन का दिनमान अर्थात उस दिन के सूर्योदय के समय को सूर्यास्त के समय में से घटा देते है घटाने पर हमें जो भी शेषफल के रूप में घन्टे मिनट प्राप्त  होते है उसको नोट करके आठ से भाग देते है जिससे प्राप्त टाइम पीरियड के 8 समान भाग हो जाते है. ये समान भाग 1 घंटा 30 मिनट के भी हो सकते है और ज्यादा के भी l
अब जातक का जिस दिन या वार में जन्म होता है सबसे पहला भाग उसी वार का सूर्योदय से प्रारम्भ होता है. जोकि निकाले गए 1 घंटा 30 मिनट तक जारी रहेगा.
जैसे किसी का जन्म मंगलवार को होता है तो सूर्योदय से  पहले मंगल का भाग शुरू होगा जोकि प्राप्त 1घण्टा 30 मिनट तक रहेगा तत्पश्चात बुधादि का भाग आठवे भाग के काल के बराबर बीतेगा. अब इस क्रम में  जैसे ही  शनि के भाग का काल शुरू होता है उसी को हम गुलिक काल के रूप में नोट कर लेते हैl

यदि किसी का जन्म रात्रि में होता है तो उपर्युक्त की तरह रात्रि मान निकाल लेते है अर्थात सूर्यास्त से सूर्योदय के बीच के कुल घंटा मिनट निकाल लेते है और 8 से भाग देकर 8 बराबर भाग कर लेते हैl

रात्रि जन्म के सम्बन्ध में, उस जन्म दिन/वार से पाँचवें वार का प्रारम्भ सूर्यास्त के बाद होता है l
यदि किसी का जन्म गुरूवार को हुआ तो इससे पांचवा वार सोमवार हुआ अर्थात चन्द्रमा के भाग का प्रारम्भ सूर्यास्त के बाद होगा इसी प्रकार क्रम से शनि के भाग को प्राप्त कर गुलिक काल को प्राप्त कर लेंगे l

अतः किसी भी कुंडली में गुलिक राशि को जानने हेतु उस कुंडली के लिए प्रयुक्त जन्म तिथि या दिन के दिनमान/रात्रिमान का प्रयोग कर उपर्युक्त विधि से गुलिक काल निकाल लेते है  और अंततः गुलिक काल के प्रारंभिक समय के साथ उस दिन की तिथि व स्थान का प्रयोग कर कुंडली बनाते है इस पर हमें कुंडली में जो भी लग्न प्राप्त होती है वही लग्न राशि  उस दिन की गुलिक की राशि कहलाती है l

गुलिक संबंधी फल--
गुलिक, कुंडली में जिस ग्रह की राशि में होता है या जिस ग्रह के नवमांश में होता है वह ग्रह किन्हीं कारणों से कमजोर या मारक हो तो ऐसे ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में जातक को बहुत अशुभ फल देने वाले हो, अनिष्ट व अरिष्ट की सम्भावना रहे l

 नवमांश, द्वादशांश या त्रिशांश कुंडली में जो भी ग्रह गुलिक के साथ जुड़ते है उनकी दशा काल में भी भीषण परेशानियों की सम्भावना रहती है l

 गुलिक के साथ यदि शुभ ग्रह बैठते है तो यह उनकी शुभता को कम कर देता है, किन्तु यदि पापी या क्रूर ग्रह गुलिक के साथ संयोग करे तो यह उन ग्रहों को और भी अनाचारी व अशुभ करने वाला बनाता है यहाँ तक कि जिस भाव में ऐसा योग हो उसके तो पूर्णरूप से विनाश की ही सम्भावना रहती
है l

गुलिक किसी भी भाव में उस भाव के कारक के साथ होता है तो उस भाव की शुभता को नष्ट प्रायः कर देता है तथा  इसके साथ संयोग करने वाले ग्रहों के कारकत्व को यह या तो नष्ट कर देता है या उसमे बहुत कमी ला देता है l
जैसे --
यदि  गुलिक चतुर्थ भाव में चन्द्रमा के साथ हो तो यह माता के लिए अत्यंत ख़राब होता है और मानसिक रोगों को देने वाला होता है l

यदि नवम भाव में सूर्य के साथ हो तो पिता को कष्टकारक हो l

चतुर्थ भाव में बुध के साथ हो तो शिक्षा व पढ़ाई के लिए अत्यंत ख़राब होता है l

गुलिक शनि के साथ यदि अष्टम भाव में हो तो यह ख़राब न होकर के जातक को दीर्घायु प्रदान करने वाला हो सकता है l

मंगल के साथ गुलिक होने से भाइयों व परिवार के साथ सम्बन्ध प्रेममय न हो l  भ्रातृ सुख अल्प या न के बराबर हो, उन पर संकट रहे भाई भौतिक दृष्टिकोण से संपन्न न हों दुःख व कष्ट का भोग करने वाले हो सकते है l

गुलिक मंगल के साथ हो और मांगलिक दोष भी हो तो यह और भी भीषण परेशानियों का कारण बनता है l

यदि गुलिक के साथ बुध हो, तो जातक की बुद्धि ठीक से काम नहीं करती है, कुछ मानसिक समस्याएं संभव हैं।

गुरु यदि गुलिक के साथ हो तो जातक ढोंगी हो, अत्यंत चतुर व छदम करने वाला हो सकता है l

यदि शुक्र के साथ गुलिक हो तो जातक का वैवाहिक जीवन संतोषजनक न हो. ऐसे जातक का समागम निम्न व दुष्ट स्त्रियों के साथ हो सकता है l

यदि गुलिक शनि के साथ हो तो त्वचादि किन्हीं स्थायी रोगों से ग्रस्त होने की सम्भावना हो l

गुलिक राहु के साथ हो तो विष या संक्रमण से खतरा रहे l

केतु के साथ गुलिक होने से आग व विजली से खतरा रहे l
असामाजिक तत्वों से भी खतरा हो सकता है l
(परेशानीयुक्त परिणाम सम्बंधित ग्रहों की  दशा के दौरान देखने को मिल सकते हैl)

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इसके विपरीत कुछ मामलों में गुलिक, राज योग देने वाला भी हो सकता है. जातक को लम्बे समय तक मान-सम्मान, उच्च पद प्रतिष्ठा व राजनैतिक क्षेत्र में विशिष्ट सफलता व प्रसिद्धि प्रदान करने वाला हो सकता है l
जैसे --
1. गुलिक जिस राशि में है उसका स्वामी उस राशि को देखता हो या गुरु अपनी मित्र या उच्च दृष्टि से गुलिक राशि को देखे तो उस राशि भाव के सम्बन्ध में इसका प्रतिकूल प्रभाव नहीं रहता अर्थात भाव सम्बन्धी शुभता को देने वाला हो l

2. जिस भाव में गुलिक स्थित हो उसका स्वामी अपनी उच्च राशि में, मित्र राशि में या त्रिकोण में स्थित हो और बलवान हो तो जातक सुदृढ़ काया से युक्त राजा हो या राजसी सुखों को भोगने वाला महाभाग्यवान यशस्वी होता है l

3. यदि गुलिक का नवमांश पति केंद्र या त्रिकोण के घरों में स्थित हो, अपनी स्वराशि या अपनी उच्च राशि में अवस्थित हो तो ऐसी स्थिति में इसके प्रतिकूल प्रभावों में कमी आ जाती है और यह राज योग की तरह फल देने वाला हो सकता है l

शास्त्रों में गुलिक को मृत्यु के समान कहा गया है अर्थात हर हाल में इसका मारक और विनाशकारी प्रभाव एक्टिव रहता है, जिसका न्यूनाधिक रूप में अनुभव किया जा सकता है l

गुलिक का लग्न आदि द्वादश भावों में प्रभाव--

1. प्रथम भाव
यदि गुलिक प्रथम भाव या लग्न में होता है तो यह निश्चित रूप से कुंडली के अच्छे परिणामों को कम करता है l
जातक समाज विरोधी कार्यों में रत, देव पूजादि से दूर रहता हुआ क्रूर व कामी हो सकता है l ऐसा जातक अपने को बहुत चतुर, चालाक व ज्ञानी समझता है जबकि इसकी बुद्धि बहुत चलायमान होती है, किसी विषय पर टिक कर काम करना इसके लिए बड़ी चुनौती हो सकती है l
जातक को विवाह, संतान व नौकरी व्यवसाय में  विलम्व व दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है l

2. द्वितीय भाव
झगड़ालू प्रकृति को रखने वाला हो, कौटुम्बिक परिस्थितियां तनाव का कारण बन सकती है, पारिवारिक विघटन संभव l
वाणी पर नियंत्रण  न रहे, आय और व्यय में असंतुलन, धन संचय बाधित हो सकता है l
अपनी बुरी आदतों के फलस्वरूप दुःख का भोग करना पड़ सकता है l

3. तृतीय भाव
जातक क्रोधी व अभिमानी हो सकता है l भ्रातृ हीनता या भ्रातृ सुख में कमी हो, अकेले रहना पसंद करे, जातक दुस्साहसी, निर्लज्ज व आडम्बर युक्त हो सकता है. किन्तु फिर भी मेहनत, हिम्मत व शक्ति से सफलता व मान-सम्मान को प्राप्त करने वाला हो l

4. चतुर्थ भाव
गुलिक के चतुर्थ भाव में होने से जातक के सुखों में ग्रहण लग जाता है l दोस्तों और रिश्तेदारों की खुशी से रहित हो
शिक्षा प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है
धन, वाहन व मकान का सुख प्राप्त होने में भी अड़चने आएं l
मानसिक व शारीरिक रूप से पीड़ित होकर रहे l

5. पंचम भाव
पंचम भाव में गुलिक होने से जातक दुष्ट प्रकृति को रखने वाला  अस्थिर मानसिकता का अविवेकी जातक हो सकता है प्रेम संबंधों में असफलता का सामना करना पड़े l
अल्प सन्तान या संतान संतप्तता का संयोग बन सकता है l

6. छठा भाव
छठे भाव में गुलिक जातक को भूतादि गूढ़ विद्याओं का शौक़ीन बना सकता है l
जातक बहुत पराक्रमी, शूरवीर व श्रेष्ठ संतानादि सर्व सुखों का भोग करने वाला होता है l इसके शत्रुओं का स्वतः ही नाश हो जाता है

7.  सप्तम भाव
वैवाहिक जीवन में सुख का अभाव हो, अत्यंत झगड़ालू, अल्पबुद्धि, कामुक व विषयी हो l पत्नी के अतिरिक्त एक या अधिक स्त्रियों से इसके सम्बन्ध होने की सम्भावना रहे l
इस योग में किसी भी प्रकार की पार्टनरशिप में धोखाधड़ी के कारण नुकसान की संभावना हो सकती है

8. अष्टम भाव
जातक नाटे कद का हो चेहरे व नेत्रों में व्यग्रता रहे l ऐसे जातक की वाणी व स्वभाव ठीक नहीं होता, यह छदम करने वाला, अत्यन्त दीन व परेशानियों से युक्त हो सकता है l

9. नवम भाव
यदि गुलिक नवें भाव में हो तो संतान संतप्तता  युक्त जीवन की सम्भावना रहे , जातक अधर्मी व अनीति से युक्त गुरुजनों व पिता की अवज्ञा करने वाला हो सकता है l

10. दशम भाव
जातक क्रूर स्वभाव का व भौतिक सुख साधनों का भोग करने वाला हो सकता  है। यह सब ओर अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए प्रयत्नशील और दया व दानशीलता से हीन हो  सकता है l

11. एकादश भाव
जातक तेज व कांति से युक्त धन व ऐश्वर्य को रखने वाला हो l यह श्रेष्ठ संतान आदि सर्व सुखों का भोग करने वाला महाभाग्यवान जातक होता है l

12. द्वादश भाव
जातक अपव्यय से परेशान, अत्यंत दीन होता है l वैवाहिक जीवन परेशानियों से युक्त व बेड रूम के सुख से बंचित हो सकता है l

                        

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