सम्बन्ध 4 प्रकार के होते है --
1. अन्योन्य राशि स्थिति - जिसको क्षेत्र सम्बन्ध भी कहा जाता है तात्पर्य यह है की एक राशि का स्वामी किसी दूसरी राशि में वैठा हो और उस राशि का स्वामी उस प्रथम राशि में वैठा हो अथवा केन्द्रेश त्रिकोण में और त्रिकोणेश केंद्र में जैसे वृष का स्वामी शुक्र कर्क में और कर्क का स्वामी चन्द्रमा वृष राशि में वैठा हो इसी प्रकार मेष का धनु में और धनु का मेष राशि में स्थित हो. यह चार सम्बंधों में से सबसे बाली अर्थात सर्वोत्तम सम्बन्ध कहा गया है I
2. परस्पर दृष्टि सम्बन्ध - एक ग्रह दूसरे ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखता है और वह दूसरा ग्रह भी इस प्रथम ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखता हो यह उपर्युक्त नियम से कुछ न्यून फल देने वाला होता है I
3. अन्यतर दृष्टि सम्बन्ध - एक ग्रह किसी राशि में हो और वह ग्रह इस राशि स्वामी को देखता हो जैसे बृहस्पति मिथुन राशि में हो और उसकी दृष्टि बुध पर हो I
4. सहावस्थान सम्बन्ध - अभिप्राय यह है की एक स्थान में दो भावों के स्वामी मिल कर बैठें या फिर दोनों एक वर्ग के हों जैसे नवमेश सूर्य और दशमेश बुध एक साथ तुला राशि में बैठे हो यह यह उपर्युक्त तीन सम्बंधों से कम शक्ति को रखने वाला राज योग होगा I
लग्न का स्वामी साधारण राज योग का निर्माण करता है,
चतुर्थेश उससे बली तथा उसके बाद सप्तमेश बली होता है और दशमेश सबसे अधिक बली होता है I
इसी प्रकार नवमेश पंचमेश से अधिक बली होता है I
परिणामस्वरूप नवमेश-दशमेश का यदि प्रथम प्रकार का सम्बन्ध हो तो यह सर्वाधिक बली राजयोग बनाएगा I
यदि नवमेश और दशमेश के सम्बन्ध के साथ पंचमेश का भी सम्बन्ध हो जाये युति या दृष्टि किसी प्रकार भी तो ऐसे राजयोग का फल बहुत ही उत्कृष्ट होता है I
किन्तु केन्द्रेश व त्रिकोणेश के सम्बन्ध के साथ यदि 3, 6, 8, 11 या 12 वें भाव के स्वामी का सम्बन्ध बन जाये तो राजयोग के फल में न्यूनता आ जाती है, उत्कृष्ट फल नहीं मिलता I
कई स्थानों में केंद्र व त्रिकोण का स्वामी एक ही ग्रह होता है जैसे किसी व्यक्ति का जन्म वृष लग्न में हो तो नवमेश व दशमेश शनि होता है ऐसे में शनि राज योग प्रदाता हो जाता है I
यह बात स्मरण रखने योग्य है की जब एक ही ग्रह केन्द्रेश व त्रिकोणेश हो और उसकI किसी दूसरे केन्द्रेश त्रिकोणेश से सम्बन्ध हो तो राजयोग का बहुत ही उत्कृष्ट फल होता है.
इन योगों में एक बात और भी विशेष है की यह केन्द्रेश और त्रिकोणेश का सम्बन्ध किस भाव में बन रहा है और इन ग्रहों का बलIबल भी जांचना बहुत जरुरी होता है जैसे यह क्या अस्त, नीच, उच्च या मूलत्रिकोणादि राशि में है अर्थात कैसी स्थिति में है I
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
BOTH SATURN AND MARS ARE MALEFIC PLANETS, BUT THEIR FINAL OUTCOMES ARE VERY DIFFERENT
Saturn and Mars are both considered malefic planets, but there is an important difference in their nature. Saturn is known as a very cruel...
-
अंक ज्योतिष में मूलांक व नामांक (संयुक्तांक) का महत्व अंक ज्योतिष शीर्षक के अंतर्गत पिछली कुछ पोस्ट में 1 से 9 तक के मूलांकों का सारगर्भ...
-
According to astrology, Sun represents soul and father. People who have a strong Sun in their horoscope they do not like any kind of hindr...
-
Facts of Numerology According to the Chaldean numerology system, each letter in a person’s name holds a specific vibrational frequency. ...
No comments:
Post a Comment