नीचभंग राज योग
जिस प्रकार जन्मांग चक्र में जब कोई ग्रह उच्च राशि में बैठता है तो उसके शुभ प्रभाव में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है ठीक उसी प्रकार पत्रिका में अपनी नीच राशि में विराजित ग्रह कई प्रकार से व्यक्ति को अपने अशुभ प्रभाव से परेशानियों में डालने वाला हो जाता है किन्तु ऐसा हमेशा नहीं होता कभी-कभी ग्रहों का विशिष्ट संयोजन इन नीच ग्रहों की अशुभता को नष्ट कर उसके शुभ प्रभाव में वृद्धि करने का कार्य करता है कदाचित इसीलिए इस प्रकार के संयोजन को ज्योतिष में नीचभंग राज योग का नाम दिया गया हैIप्रायः देखा जाता है कि नीच भंग राज योग की संरचना जिस किसी भी व्यक्ति की पत्रिका में होती है वह व्यक्ति धन ऐश्वर्य व उच्च पद प्रतिष्ठा से युक्त होता है यहाँ तक कि कुंडली में ऐसी स्थिति व्यक्ति को आरोग्य प्रदान करने वाली भी हो सकती हैI
कुंडली में नीच भंग राज योग का निर्माण कब और कैसे आइये जानते है --
यदि जन्मांग चक्र में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में स्थित हो और उस नीच राशि का स्वामी चंद्र लग्न से केंद्र भाव अर्थात पहले, चौथे, सातवें या दसवें भाव में स्थित हो जैसे - बुध मीन राशि में नीच का होता और मीन राशि का स्वामी वृहस्पति होता है अतः चन्द्रमा से यदि गुरु केंद्र स्थान में हो तो नीच भंग राज योग का निर्माण होगा.
2. कुंडली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित है उसका उच्च नाभ यदि चन्द्रमा से केन्द्र में स्थित हो तब भी नीच भंग राज योग होता हैI
अब जैसे शनि मेष राशि में नीच का होता है और मेष में सूर्य उच्च का होता है अतः उच्च नाभ सूर्य हुआ I
3. यदि किसी व्यक्ति के जन्मांग चक्र में कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है तो उस नीच राशि का स्वामी और उस नीच राशि में स्थित ग्रह के उच्च राशि का स्वामी दोनों एक दूसरे से केंद्र में विराजमान हो जाएँ तो भी कुंडली में नीच भंग राज योग बनता है
जैसे - चन्द्रमा वृश्चिक राशि में नीच का होता है और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल हुआ, अब नीच राशि में स्थित ग्रह चन्द्रमा है और चन्द्रमा वृष राशि में उच्च का होता है अतः वृष राशि का स्वामी शुक्र व मंगल एक दूसरे से केंद्र में स्थापित हो जाएँ तब यह योग घटेगाI
4. यदि जन्मांग चक्र में नीच राशि में स्थित ग्रह तथा उस नीच राशि का स्वामी एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से से देखें तो नीच भंग राजयोग बनता है
जैसे - चन्द्रमा वृश्चिक में नीच का होता है जिसका स्वामी मंगल हुआ अर्थात चन्द्रमा व मंगल एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखें I
नीच ग्रह यदि केंद्र में स्थित हो तो बड़े बड़े राजसी लोगो से मान्य व पूजनीय व्यक्ति होता है स्वयं भी राजसी सुख ऐश्वर्य को रखने वाला हो जाता हैI
5. यदि किसी के जन्मांग चक्र में जो ग्रह नीच राशि में विराजित है तो उस नीच राशि का स्वामी और उस नीच ग्रह की उच्च राशि का स्वामी इन दोनों में से कोई एक ग्रह भी लग्न या चन्द्र लग्न से केंद्र भाव में स्थित हो जाये तो भी नीच भंग राज योग निर्माण होता होता हैI
6. यदि किसी के जन्मांग चक्र में दो ग्रह एक ही राशि में इस प्रकार व्यवस्थित हो जाएँ कि एक के लिए वह नीच राशि होऔर दूसरे ग्रह के लिए उच्च तो ऐसा संयोजन भी नीच भंग राज योग का निर्माण करता है.
जैसे - शनि और सूर्य का मेष राशि में एक साथ स्थापित हो जाना शनि के नीच को भंग करता है I
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