मानव जीवन को दीर्घायु प्रदान करने वाले कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :-
1. लग्न, तृतीय व दशम भाव सबल स्थिति में हो इन पर व इनके स्वामियों पर शुभ ग्रहों का दृष्टि प्रभाव हो I
2. प्रथम तृतीय व दशम के स्वामी स्व या उच्च राशि में स्थित हो I
3. प्रथम, तृतीय या दशम भाव या भावेश के दोनों ओर शुभ ग्रह स्थापित हो I
4. लग्नेश प्रथम चतुर्थ सप्तम या दशम भाव में या त्रिकोण भाव पंचम या नवम में स्थित हो और उन पर शुभ ग्रहों का दृष्टि प्रभाव भी हो तो जातक निश्चित ही दीर्घायु होगा I
5. यदि लग्नेश 5वे या नवें भाव में हो और गुरु शुक्र पूर्ण चंद्र के द्वारा दृष्ट हो तो जातक 90 से 100 वर्ष तक की आयु को भोग सकता है I
6. शनि पहले, दूसरे, तीसरे, पांचवें, छठे, सातवें, आठवें या नौवें भाव में हो तो भी व्यक्ति दीर्घ जीवन को जीने वाला हो सकता है I
7. अष्टक वर्ग द्वारा भी यदि लग्न भाव व लग्नेश को सामान्य से ज्यादा शुभ अंक प्राप्त हो I
लग्नेश का षड्बल सामान्य से अधिक हो तो इससे भी व्यक्ति की आयु में वृद्धि संभव होती है I
8. इसी प्रकार अष्टम भाव का स्वामी 2, 3, 6, 8 ya 12 वे भाव में हो लेकिन इसका बल लग्नेश से अधिक न हो दीर्घायु प्रदान कर सकता है I
9. शनि या मंगल की दृष्टि यदि अष्टम भाव पर हो तो यह भी व्यक्ति की आयु में वृद्धि करता है I
10. यदि शनि ग्रह स्वम अष्टम भाव में वैठा हो तो भी व्यक्ति दीर्घ जीवन को भोग सकता है किन्तु यह धन ऐश्वर्य के अर्जन में तमाम दिक्कतों व परेशानियों को भी देने वाला होता है I
11. यदि लग्न और लग्नेश वर्गोत्तम हो जाएँ तो व्यक्ति को दीर्घायु प्रदान करने वाले होते है I
साथ ही यदि अष्टमेश और शनि भी स्ट्रांग पोजीशन में हो तो जातक 100 वर्ष की उम्र के आस पास तक भोग करने वाला हो सकता है हालाँकि उसको ऐसे में अनेक बीमारियों व दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता है I
12. यदि शुभ ग्रह भी अष्टम भाव पर स्थित है या उनकी दृष्टि उस पर है तथा चन्द्रमा 11 वें भाव में है या फिर बृहस्पति प्रथम भाव में, राहु तीसरे या केतु छठे भाव में हो, मंगल प्रथम व दूसरे भाव में हो तो यह किसी भी व्यक्ति के लिए दीर्घायु कारक होते है I
यदि व्यक्ति जैमिनि मत से अल्पायु हो तो उपर्युक्त बिंदु व्यक्ति को मध्यम आयु प्रदान करने में सहायक हो सकते हैं और यदि मध्यमायु है तो दीर्घायु की सीमा तक ले जाते है और यदि दीर्घायु आती है तो व्यक्ति उपर्युक्त विन्दुओं के योग से 100 वर्ष से ऊपर तक की आयु का भोग कर सकता है I
जैमिनी होरा शास्त्र के अनुसार तीन युग्मो के आधार पर जीवन की अवधि का निर्णय लिया जाता है
1. लग्नेश-अष्टमेश : दोनों चर राशि में हो या एक स्थिर राशि में दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो अधिकतम आयु (दीर्घायु) 120 वर्ष तक हो सकती है I
2. लग्न होरा लग्न : यदि एक चर व दूसरा स्थिर राशि में स्थित हो या फिर दोनों द्विस्वभाव राशि में हो I अधिकतम आयु जिसको मध्यम आयु के रूप में जाना जाता है 80 वर्ष तक हो सकती है I
3. शनि-चंद्र : यदि एक चर राशि में हो दूसरा द्विस्वभाव में या फिर दोनों स्थिर राशि में हो तो अल्पायु की सीमा अधिकतम 40 वर्ष तक हो सकती है.
अल्प आयु = (न्यूनतम सीमा) 32 + 40 (अधि. सीमा)
= 72 ÷ 2 = 36 वर्ष
मध्यम आयु = (न्यूनतम सीमा)) 40 + 80 (अधि सीमा)
= 120 ÷ 2 = 60 वर्ष
दीर्घायु = (न्यूनतम सीमा) 80 + 120 (अधिकतम सीमा)
= 200 ÷ 2 = 100 वर्ष
1. लग्न, तृतीय व दशम भाव सबल स्थिति में हो इन पर व इनके स्वामियों पर शुभ ग्रहों का दृष्टि प्रभाव हो I
2. प्रथम तृतीय व दशम के स्वामी स्व या उच्च राशि में स्थित हो I
3. प्रथम, तृतीय या दशम भाव या भावेश के दोनों ओर शुभ ग्रह स्थापित हो I
4. लग्नेश प्रथम चतुर्थ सप्तम या दशम भाव में या त्रिकोण भाव पंचम या नवम में स्थित हो और उन पर शुभ ग्रहों का दृष्टि प्रभाव भी हो तो जातक निश्चित ही दीर्घायु होगा I
5. यदि लग्नेश 5वे या नवें भाव में हो और गुरु शुक्र पूर्ण चंद्र के द्वारा दृष्ट हो तो जातक 90 से 100 वर्ष तक की आयु को भोग सकता है I
6. शनि पहले, दूसरे, तीसरे, पांचवें, छठे, सातवें, आठवें या नौवें भाव में हो तो भी व्यक्ति दीर्घ जीवन को जीने वाला हो सकता है I
7. अष्टक वर्ग द्वारा भी यदि लग्न भाव व लग्नेश को सामान्य से ज्यादा शुभ अंक प्राप्त हो I
लग्नेश का षड्बल सामान्य से अधिक हो तो इससे भी व्यक्ति की आयु में वृद्धि संभव होती है I
8. इसी प्रकार अष्टम भाव का स्वामी 2, 3, 6, 8 ya 12 वे भाव में हो लेकिन इसका बल लग्नेश से अधिक न हो दीर्घायु प्रदान कर सकता है I
9. शनि या मंगल की दृष्टि यदि अष्टम भाव पर हो तो यह भी व्यक्ति की आयु में वृद्धि करता है I
10. यदि शनि ग्रह स्वम अष्टम भाव में वैठा हो तो भी व्यक्ति दीर्घ जीवन को भोग सकता है किन्तु यह धन ऐश्वर्य के अर्जन में तमाम दिक्कतों व परेशानियों को भी देने वाला होता है I
11. यदि लग्न और लग्नेश वर्गोत्तम हो जाएँ तो व्यक्ति को दीर्घायु प्रदान करने वाले होते है I
साथ ही यदि अष्टमेश और शनि भी स्ट्रांग पोजीशन में हो तो जातक 100 वर्ष की उम्र के आस पास तक भोग करने वाला हो सकता है हालाँकि उसको ऐसे में अनेक बीमारियों व दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता है I
12. यदि शुभ ग्रह भी अष्टम भाव पर स्थित है या उनकी दृष्टि उस पर है तथा चन्द्रमा 11 वें भाव में है या फिर बृहस्पति प्रथम भाव में, राहु तीसरे या केतु छठे भाव में हो, मंगल प्रथम व दूसरे भाव में हो तो यह किसी भी व्यक्ति के लिए दीर्घायु कारक होते है I
यदि व्यक्ति जैमिनि मत से अल्पायु हो तो उपर्युक्त बिंदु व्यक्ति को मध्यम आयु प्रदान करने में सहायक हो सकते हैं और यदि मध्यमायु है तो दीर्घायु की सीमा तक ले जाते है और यदि दीर्घायु आती है तो व्यक्ति उपर्युक्त विन्दुओं के योग से 100 वर्ष से ऊपर तक की आयु का भोग कर सकता है I
जैमिनी होरा शास्त्र के अनुसार तीन युग्मो के आधार पर जीवन की अवधि का निर्णय लिया जाता है
1. लग्नेश-अष्टमेश : दोनों चर राशि में हो या एक स्थिर राशि में दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो अधिकतम आयु (दीर्घायु) 120 वर्ष तक हो सकती है I
2. लग्न होरा लग्न : यदि एक चर व दूसरा स्थिर राशि में स्थित हो या फिर दोनों द्विस्वभाव राशि में हो I अधिकतम आयु जिसको मध्यम आयु के रूप में जाना जाता है 80 वर्ष तक हो सकती है I
3. शनि-चंद्र : यदि एक चर राशि में हो दूसरा द्विस्वभाव में या फिर दोनों स्थिर राशि में हो तो अल्पायु की सीमा अधिकतम 40 वर्ष तक हो सकती है.
अल्प आयु = (न्यूनतम सीमा) 32 + 40 (अधि. सीमा)
= 72 ÷ 2 = 36 वर्ष
मध्यम आयु = (न्यूनतम सीमा)) 40 + 80 (अधि सीमा)
= 120 ÷ 2 = 60 वर्ष
दीर्घायु = (न्यूनतम सीमा) 80 + 120 (अधिकतम सीमा)
= 200 ÷ 2 = 100 वर्ष
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