Tuesday, February 4, 2025

राहु-केतु के रहस्यमयी योग: जो व्यक्ति को धन-वैभव से कर सकते हैं संपन्न

वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को रहस्यमयी तथा प्रभावशाली ग्रह माना जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने की क्षमता रखते हैं।
यह ग्रह जन्मकुंडली में यदि मज़बूत स्थिति में विराजमान हों, तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख, ऐश्वर्य और सफलता प्राप्त होती है। ऐसे लोग भौतिक समृद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा और विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति हासिल करने में सफल देखे जाते हैं।

इसके विपरीत, यदि जन्मकुंडली में इन ग्रहों की स्थिति प्रतिकूल या निर्बल हो, तो व्यक्ति को जीवन में अनेक संघर्षों, कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उसे विभिन्न प्रकार की परेशानियों से जूझना पड़ सकता है, चाहे वह आर्थिक हो, पारिवारिक हो या फिर स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या। राहु और केतु की प्रतिकूल स्थिति व्यक्ति को मानसिक तनाव, भ्रम और अस्थिरता की स्थिति में भी डाल सकती है।

हालांकि, यदि ये ग्रह कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में स्थित हों, तो अत्यंत शुभ फल देने वाले माने जाते हैं। इन स्थानों पर स्थित राहु-केतु व्यक्ति को साहस, आत्मविश्वास, पराक्रम और सफलता प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने परिश्रम और बुद्धिमत्ता के बल पर भौतिक सुख-साधनों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। जीवन में धन, मान-सम्मान और उन्नति की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। साथ ही, वे अपने प्रतिस्पर्धियों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में भी सक्षम होते हैं।

लेकिन इसके अतिरिक्त, एक और विशिष्ट संयोग का उल्लेख मिलता है, जो व्यक्ति को अत्यधिक धन-वैभव प्रदान कर सकता है।

जैसे यदि राहु या केतु जन्मकुंडली के केंद्र स्थान (अर्थात् प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव) में स्थित हों और इनके साथ त्रिकोणेश—यानी पंचम भाव या नवम भाव के स्वामी—की युति हो, तो यह अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसे योग से व्यक्ति को जीवन में धन, ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है। वह न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध होता है, बल्कि उसे समाज में भी उच्च प्रतिष्ठा मिलती है। इस संयोग से व्यक्ति को अनेक प्रकार के भौतिक सुख-साधन प्राप्त होते हैं, और वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
इसके अलावा, यदि राहु या केतु त्रिकोण स्थान—अर्थात् पंचम या नवम भाव—में स्थित हों और इनकी युति केंद्रेश (अर्थात् प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव के स्वामी) के साथ हो, तो यह भी अत्यंत शुभ फलदायी होता है। इस प्रकार के योग से व्यक्ति के जीवन में अपार धन-ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। ऐसे लोग भाग्यशाली माने जाते हैं, क्योंकि उनके पास अपार धन-संपत्ति अर्जित करने की क्षमता होती है। वे समाज में उच्च पद प्राप्त कर सकते हैं और उनका जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है।

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