दोस्तों,
भारतीय ज्योतिष में कर्तरी योग बहुत ही महत्वपूर्ण योगों में से एक माना गया है, यह शुभ कर्तरी व पाप् कर्तरी दो प्रकार का होता है तथा जिस किसी भी भाव या ग्रह से यह सम्बंधित होता है उस भाव व ग्रह से जुड़ी चीजों में शुभता व अशुभता को जोड़ने वाला वन जाता है I
शुभ कर्तरी योग
कुंडली के किसी भी भाव या ग्रह से दूसरे और 12वें भाव में जब शुभ ग्रह अर्थात चन्द्र, बुध, गुरु व शुक्र मौजूद होते हैं तब शुभ कर्तरी योग की संरचना होती हैIयह योग जिस भाव और ग्रह से संबंधित होता है, उस भाव व ग्रह से जुडी शुभ बातों में वृद्धि करने का कार्य करता हैI
पाप कर्तरी योग
इसके विपरीत पाप कर्तरी योग तब बनता है जब किसी भी भाव या ग्रह से दूसरे और 12वें भाव में अशुभ ग्रह सूर्य, मंगल, शनि, या राहु केतु स्थित होते है।
जो भाव या ग्रह इस योग से प्रभावित होता है उनसे सम्बंधित चीजों में नकारात्मकता उत्पन्न करता है या कह सकते है की उनके शुभ प्रभाव में कमी करके अशुभ व ख़राब बातों में वृद्धि करने का कार्य करता हैI
आज हम बात करते है कुंडली के प्रथम भाव अर्थात लग्न से बनने वाले शुभ व पाप कर्तरी योग की I
प्रथम भाव यानी लग्न से प्रथम व द्वादश भाव में जब बुध, गुरु, शुक्र या चन्द्र में से कोई भी स्थित हो तो इन ग्रहों की शुभ प्रकृति के कारण यह लग्न से बनने वाला शुभ कर्तरी योग होगा ऐसे में लग्न अनुकूल रूप से प्रभावित होगी तथा जो भी बाते इस भाव से विचारी जाती है उनकी शुभता में वृद्धि हो जायेगी अर्थात यह संरचना जातक को उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु प्रदान करने वाली होगी तथा सभी भौतिक सुख साधनों का स्थायी भोग भी करवाएगी I
वास्तव में दोस्तों, यह योग व्यक्ति को जीवन में शत्रुओं से हीन करता है, धन यश व प्रसिद्धि दिलाने वाला माना जाता है I
किन्तु इसके विपरीत यदि लग्न से दूसरे और 12वें भाव में सूर्य, मंगल, शनि, या राहू केतु जैसे क्रूर व पापी ग्रह स्थित हो जाएँ तो ऐसे में लग्न से पाप कर्तरी योग का निर्माण होगा जिससे लग्न पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और बताये हुए लग्न संबंधी शुभ फलों में बहुत कमी हो जायेगी अर्थात आयु व रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होगी सांसारिक सुखोपभोग भी बाधित होंगे I
प्रथम भाव यानी लग्न से प्रथम व द्वादश भाव में जब बुध, गुरु, शुक्र या चन्द्र में से कोई भी स्थित हो तो इन ग्रहों की शुभ प्रकृति के कारण यह लग्न से बनने वाला शुभ कर्तरी योग होगा ऐसे में लग्न अनुकूल रूप से प्रभावित होगी तथा जो भी बाते इस भाव से विचारी जाती है उनकी शुभता में वृद्धि हो जायेगी अर्थात यह संरचना जातक को उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु प्रदान करने वाली होगी तथा सभी भौतिक सुख साधनों का स्थायी भोग भी करवाएगी I
वास्तव में दोस्तों, यह योग व्यक्ति को जीवन में शत्रुओं से हीन करता है, धन यश व प्रसिद्धि दिलाने वाला माना जाता है I
किन्तु इसके विपरीत यदि लग्न से दूसरे और 12वें भाव में सूर्य, मंगल, शनि, या राहू केतु जैसे क्रूर व पापी ग्रह स्थित हो जाएँ तो ऐसे में लग्न से पाप कर्तरी योग का निर्माण होगा जिससे लग्न पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और बताये हुए लग्न संबंधी शुभ फलों में बहुत कमी हो जायेगी अर्थात आयु व रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होगी सांसारिक सुखोपभोग भी बाधित होंगे I
किन्तु स्मरण रहे कि यह योग तभी बनता है जब किसी भाव या ग्रह के दोनों ओर या तो शुभ ग्रह व्यवस्थित हो जाएँ या फिर अशुभ ग्रह, किन्तु यदि किसी भाव के एक ओर शुभ ग्रह स्थित हो और दूसरी ओर अशुभ तो ऐसे में इस योग की संरचना नहीं होतीI
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